अन्तर्जाल की दुनिया में प्रायः हम सब लेखन, पठन, पाठन, परस्पर प्रतिक्रिया प्रेषण और धन्यवाद ज्ञापन अपनी अपनी रुचि, समय और सुविधा के हिसाब से आपस में शब्द और संकेत के माध्यम से व्यक्त करते हैं फिर कभी कभी ऐसे पोस्ट क्यों दिखाई देते जिसमें मित्रों की सूची में शामिल कुछ मित्रों के प्रति कमोवेश नाराजगी की अभिव्यक्ति होती है जबकि साहित्य हमें बेहतर इंसान बनने और बनाने का तरीका सिखाता है साथ ही साथ नित नूतन सृजन हमारा धर्म है इस बात का बोध भी। शुभमस्तु।